
Rishabhdeo तहसील
राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले का एक शहरऔर तहसील हे ऋषभदेव। इसे धुलेव और रिखभदेव के नाम से भी जाना जाता हे। ऋषभदेव तहसील उदयपुर के दक्षिणी भाग में स्थित हे। इस स्थान को धुलेव कहने का कारण यह के भील सरदार धुलेव के नाम पर पड़ा सरदार धुलेव ने ही भगवान ऋषभदेव के मंदिर की विदेशी आक्रांताओ से की थी।
Rishabhdeo नाम भगवान ऋषभदेव के प्रसिद्ध मंदिर के नाम पर पड़ा।ऋषभदेव भगवान को ही केसरिया जी कहा जाता हे क्योकि यहां केसर से पूजा की जाती हे। Rishabhdev तहसील में मुख्य आकर्षण का केंद्र भगवान ऋषभदेव का मंदिर हे। इस मंदिर को मेवाड़ के चार मुख्य धार्मिक संस्थाओं में एक माना जाता हैं। ये एक विख्यात जैन मंदिर हे ऋषभदेव तहसील की उदयपुर से दुरी 65 किमी की दुरी पर स्थित हे। ऋषभदेव तहसील उदयपुर से अहमदाबाद हाइवे पर स्थित हे।
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Rishabhdeo के बारे में जानकारी
केसरिया जी हरे रंग के संगमरमर (ग्रीन मार्बल) के लिए भी प्रसिद्ध है मसारो की ओबरी, ओडावास एवं कागदर में 200 से भी अधिक ग्रीन मार्बल की खदाने हे। दुनिया भर का 90 % (ग्रीन मार्बल) संगमरमर उत्पादित किया जाता हे। यहा से लगभग 70% प्रतिशत की हरे संगमरमर का निर्यात अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा और कई अन्य देशों में किया जाता है। ऋषभदेव तहसील की उदयपुर से दुरी 65 किमी की दुरी पर स्थित हे। Rishabhdeo तहसील उदयपुर से अहमदाबाद हाइवे पर स्थित हे।
ऋषभदेव की शैक्षणिक संस्था / Educational institutions of Rishabhdeo
इस क्षेत्र में शिक्षा से सम्बंदित कई स्कूल और कॉलेज हे।
Govt.sr.sec.स्कूल,
Govt.sr.sec.girls School
Mahaveer Public School
Vivekananda Kendra vidyalaya
Eden International School
Vidhya Niketan,
Classic Public School,
J.R Sharma mahavidyala
अभी उच्च शिक्षा (एमबीबीएस, बीटेक, बी कॉम, सी. ए. और कई पाठ्यक्रम) के लिए कई छात्र बाहर जा रहे हैं।
Population of Rishabhdeo / ऋषभदेव तहसील की जनसंख्या
Rishabhdeo की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 9,171 थी। यह की पुरुष आबादी 52 % और महुला आबादी 48 % हे। यह की साक्षरता दर 72 % हे जो की एक अछि मणि जाती हे। यह पुरुष साक्षरता 80 % और महिला साक्षरता 70 % हे। यह की 14 % आबादी 6 साल से कम की आयु की हे।
यहां की आबादी का 50 प्रतिशत जैन का हे जिसमे भी 95 प्रतिशत दिगंबर जैन हे। बाकि अन्य में हिन्दू निवास करते हे। मंदिर के आसपास श्वेतांबर जैन और दिगंबर जैन, कई भील और मीणा आसपास के गांवों में रहते हैं, और प्रार्थना के लिए नित्य आते हैं। यहां की ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती हे।
ऋषभदेव का प्रसिद्ध उत्सव रथोत्सव / Rathotsav is the famous festival of Rishabhdeo
परियूषाण पर्व की समाप्ति के बाद कस्बे में रथोत्सव मनाया जाता है। इस पर्व को भगवान नेमिनाथ के विवाह के रूप में मनाया जाता है। पुरुष सफेद कपड़े पहनते हैं और महिलाएं चुंदद पहनती हैं। लोग डांडिया और गरबा खेलते हैं। रथोत्सव का मुख्य आकर्षण 800 साल पुराना रथ है। त्योहार दो दिनों के लिए मनाया जाता है और धुलेव जवानों के मार्च पास्ट के साथ समाप्त होता है।
ऋषभदेव मंदिर / Rishabhdeo Mandir

8 वी शताब्दी में बना ये मंदिर भगवन ऋषभदेव को समर्पित हे। मंदिर बहुत ही दार्शनिक और कलात्मक तरीके से बनाया गया हे। मंदिर का शिखर, दीवारे, दरवाजा बहुत ही खूबसूरत और दार्शनिक शैली में बनाया गया हे। मंदिर में बने 52 शिखर काफी दूर से भी दिखाई पड़ते हे।
भगवान ऋषभदेव का मुख्य मंदिर बहुत ही बारीक़ कारीगरी से बनाया गया हे जो की शानदर और आकृषक दिखाई पड़ती हे। मंदिर में 52 मीनारे बानी हुई हे। मन जाता हे की मंदिर में 52 मीनारे बनाने के पीछे का कारन नंदीश्वर द्वीप के 52 मंदिरो के प्रतिक के रूप में किया गया।
आंगन से ठीक पहले और मुख्य मंदिर के सामने संगमरमर के हाथी पर विराजमान भगवान ऋखदेव की माता मरुदेवी माता की मूर्ति है।
ऋषभदेव मंदिर की बनावट / Rishabhdeo Mandir

मंदिर का पहला द्वार वैकरखाना के रूप में। बाहरी कक्षाओं का वर्ग दक्ष खेल के मंदिर से आता है। यह दूसरे प्रवेश द्वार पर भी है। दोनों दरवाजों पर काले पत्थर का हाथी खड़ा है। उत्तर दिशा में जहां नवरात्रि के दिनों में दुर्गा की पूजा की जाती है, वहां ऊपरी द्वार के दोनों किनारों में से एक ओर ब्रह्मा और दूसरी शिव मूर्ति है सीढ़ियों के माध्यम से इस मंदिर में जाने की व्यवस्था है। फुटपाथ के ऊपर मंडप के बीच में मरुदेवी की प्रतिमा विराजमान है।
भगवान भगवद् गीता का मंच सीढ़ियों से आगे बाईं ओर बना हुआ है, जहां भागवत की कहानी अराजकता में है। 9 कॉलम होने के कारण इसे नाइन-पोस्टर के नाम से जाना जाता है। यहां से तीसरे गेट में प्रवेश होता है।
ऋषभदेव मंदिर की मुख्य मुर्तिया / Main idols of Rishabhdeo temple

मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवान ऋषभ की हे। इस मूर्ति को पद्मासन मुद्रा काले पत्थर पर उकेरा गया हे। यह मूर्ति लगभग 3.5 फीट की हे। मुख्य मूर्ति के सिंगसन पर दो बेलो को उकेरा गया हे। जिसमे तीर्थंकर की माँ के 14 सपने भी हे यहां मुख्य देवता के चारो और अन्य 23 मुर्तिया हे जिसमे 2 खड़ी और 21 बैठी हुई जो की एक अष्ट धातु की परिक्रमा हे।
श्री प्रभु जी का गोल चेहरा बहुत आकृषक और मनमोहक हे। पूरा मंदिर, मुख्य आंतरिक अपार्टमेंट, गहरी पंडाल, नौ चौकी, विधानसभा पंडाल, भामती, देवताओं के छोटे मंदिर, श्रुंगरा चौकी, शिखर और घेरने वाले किले के साथ बस माजे है यहां के 52 भव्य जिनालय दर्शनारथियो को मंदमुक्त कर देते हे। मंदिर के खेला मंडप के उत्तर और दक्षिण की ओर, तीर्थंकर वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी (सामूहिक रूप से पंच-बालाती के रूप में संदर्भित) की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर में 1000 पिलर बने हुहे हे और सभी के सभी अलग बनाये गए हे।
मंदिर के दरवाजे पर काले मार्बल के हाथी बनाये गए हे मंदिर के पूर्व में चक्रेश्वर की और दक्षिण की और पद्मावती की प्रतिमा लगी हुई हे।
उदयपुर और महाराणा
चित्तोड़ छोड़ने के बाद सिसोदिया राजवंश को पुनः स्थापित करने केलिए जैन भामाशाओं ने धन दिया था महत्वपूर्ण प्रभाव के करना महाराणा भगवान ऋषभदेव के भग्त बन गए। महाराणा फतेह सिंह ने मंदिर में एक कोट भेट किया।


