गणगौर आइये जानते हैं गणगौर से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बातें

यह पर्व सुहागिन स्त्रियों का व्रत जो शिव व पार्वती के अखण्ड प्रेम का प्रतीक जिसमें गण महादेव का व गौरी पार्वती का प्रतीक है।

चैत्र कृष्ण एकम् से चैत्र शुक्ल तृतीया अर्थात् 18 दिन तक पूजी जाती है लेकिन यह 16 दिन का पर्व ही माना जाता है

क्योंकि महिलाएँ सामूहिक रूप से पूजन 16 दिन ही करती है। सिंजारा व गणगौर बोलावणी (अंतिम) का दिन सामूहिक पूजा में नहीं गिना जाता है।

इसी कथा के चलते तभी से गणगौर उपवास को महिलाएं अपने पति से छिपाते हुए करती हैं।जयपुर व उदयपुर की गणगौर प्रसिद्ध है।

बूंदी में गणगौर क्यों नहीं मनाते है?

बूंदी में यह त्योहार नहीं मनाया जाता है क्योंकि बूंदी के शासक बुद्ध सिंह का भाई जोध सिंह जैतसागर तालाब में गणगौर विसर्जन के समय हाथी के द्वारा नौका पलटने से डूब गये थे।

इसी के बारे में कहावत प्रसिद्ध है- "हाड़ो ले डूब्यो गणगौर"।

जोधपुर में गणगौर क्यों नहीं मनाते है?

जोधपुर में भी यह त्योहार 1491 के बाद नहीं मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन जोधपुर शासक राव सातल की मृत्यु घुड़ेल खां से तीजणियों को बचाते हुए हुई थी।

जैसलमेर में बिना ईसर की गणगौर क्यों मनाते है?

जैसलमेर व बीकानेर रियासतों में संबंध अच्छे नहीं थे एक-दूसरे के इलाके में लूटपाट करते थे। गणगौर के अवसर पर गढ़ीसर तालाब जाती गणगौर की सवारी पर बीकानेर द्वारा हमला कर दिया गया जिसमें जैसलमेर ने गणगौर तो बचा ली लेकिन ईसर की प्रतिमा नहीं बचा पाए। तब से जैसलमेर में अकेली गणगौर की सवारी अर्थात् बिना ईसर की सवारी चैत्र शुक्ल चतुर्थी को निकाली जाती है।

नाथद्वारा की गणगौर

नाथद्वारा में गणगौर का पर्व उत्साह पूर्वक 4 दिनों तक मनाया जाता है। इन चारों दिन गणगौर की पोशाक के रंग बदले जाते हैं। जैसे-

चैत्र शुक्ल तृतीया - चुन्दड़ी गणगौर चैत्र शुक्ल चतुर्थी  - हरी गणगौर चैत्र शुक्ल पंचमी -  गुलाबी गणगौर चैत्र शुक्ल षष्ठी   - केसरिया गणगौर

इस 4 दिनों के उत्सव में श्रीनाथजी को भी संबंधित दिन के रंग की पोशाक पहनाई जाती है।