शहरो के बाहर आपने इन लोगो को जरुर देखा होगा ,इनका इतिहास आपको जानना चाहिए
जब चित्तौड़गढ़ के राजा महाराणा प्रताप ने महलो का त्याग किया तब उनके साथ लोहार जाती के हजारों लोगो ने भी घर छोड़ दिया,जो दिन रात उन के लिए हथियार बनाते थे
इस युद्ध के बाद मेवाड़ ,चितोड़ पर मुगलों का कब्ज़ा हो गया और तभी से इनके पुर्वज घर वापस नहीं गए तब से ये लोग घूम घूम कर अपना जीवन जीते आरहे हैं इन्हें गाड़िया लोहार कहते है |
ये लोग कभी अपना घर नहीं बनते,इनकी गाड़ि ही इनका चलता फिरता घर है | इनका जीवन -मरण,सब इसी गाड़ी में होता हैं,दशको बीत गए ,शताब्दीया बीत गई पर इन्होंने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी |
यह प्रतिज्ञा इनके समुदाय की पहचान बन गई हैं | आजादी के बाद 6 अप्रैल 1955 को नहरु जी ने गाड़िया लोहारों से कहा-भारत की स्वतंत्रता के साथ किला भी स्वतंत्र हो गया हैं |
अब आप दुबारा चित्तौड़गढ़ में बस जाइये | लेकिन गाड़िया लोहरो ने प्रधामंत्री का प्रस्ताव ठुकरा दिया और अपनी खाना बदोश जीवन शैली को जारी रखा
अब आप दुबारा चित्तौड़गढ़ में बस जाइये | लेकिन गाड़िया लोहरो ने प्रधामंत्री का प्रस्ताव ठुकरा दिया और अपनी खाना बदोश जीवन शैली को जारी रखा