चित्तौडगढ़ के मंडफिया स्थित श्री सांवलिया सेठ का मंदिर करीब 450 साल पुराना है. मेवाड़ राजपरिवार की ओर से इस मंदिर का निर्माण करवाया है.

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से है. कि वदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल हैं,

जिनकी वह पूजा किया करती थी. तत्कालीन समय में संत-महात्माओं की जमात में मीरा बाई इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी.

दयाराम नामक संत की ऐसी ही एक जमात थी जिनके पास ये मूर्तियां थी. बताया जाता है की जब औरंगजेब की सेना मंदिरों में तोड़-फोड़ कर रही थी तब मेवाड़ में पहुंचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा.

मुगलों के हाथ लगने से पहले ही संत दयाराम ने प्रभु- प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट वृक्ष के नीचे गड़ा खोद कर छिपा दी थी

वदंतियों के अनुसार में कालान्तर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नामक ग्वाले को सपना आया

की भादसोड़ा-बागूड गांव की सीमा के छापर में भगवान की तीन मूर्तिया जमीन में दबी हुई हैं.

जब उस जगह पर खुदाई की गई तो सपना सही निकला और वहां से एक जैसी तीन मूर्तिया प्रकट हुई.