मीणा जनजाति का कुंभ

गौतमेश्वर / भूरिया बाबा मेला (प्रतापगढ़)

पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा गौतम ऋषि महादेव का वार्षिक मेला भरता । इस मेले को मीणा समाज के लोग एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाते है। शिवगंज तहसील क्षेत्र के चोटिला गांव के पास सुकड़ी नदी में करीब तीन किमी की दूरी तक यह मेला भरता है।

गरासिया जनजाति का कुंभ

गौर का मेला (सिरोही)

गरासियों का प्रमुख मेला 'गौर का मेला या अन्जारी का मेला' है जो सिरोही जिले में में वैशाख पूर्णिमा को लगता है। इनके बड़े मेले "मनखारो मेलो" कहलाते हैं। गुजरात के चौपानी क्षेत्र का मनखारो मेलो प्रसिद्ध है। युवाओं के लिए इन मेलों का बड़ा महत्व है।

डामोरो जनजाति का कुंभ

ग्यारस की रेवाड़ी (डूंगरपुर)

इनके प्रमुख मेले डूंगरपुर जिले में ग्यारस की तिथि को 'रेवाड़ी मेला' तथा गुजरात के पंचमहल क्षेत्र में छैला बाबूजी का मेला लगता है। डामोरों के गांव के मुखिया को 'मुखी' नाम से बुलाया जाता है।

कंजर जनजाति का कुंभ

चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर)

यह मेला माध कृष्ण चतुर्थी को भरता है। इस मेले को “कंजर जनजाति का कुम्भ” कहते हैै।

भीलों जनजाति का कुंभ

घटिया अम्बा का मेला (बांसवाड़ा)

यह मेला चैत्र अमावस्या को भरता है। इस मेले को “भीलों का कुम्भ” कहते है।

सहरिया जनजाति का कुंभ

सीताबाड़ी का मेला (बारां)

यह मेला ज्येष्ठ अमावस्या को भरता है। इस मेले को “सहरिया जनजाति का कुम्भ” कहते है। हाडौती अंचल का सबसे बडा मेला है।

आदिवासियों का कुंभ

बेणेश्वरधाम (डूंगरपुर)

यह मेला सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर मेला भरता है। यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता हैं। इस मेले को बागड़ का पुष्कर व आदिवासियों मेला भी कहते है। संत माव जी को बेणेश्वर धाम पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

मारवाड़ का कुंभ

रामदेवरा (जैसलमेर)

इस मेले का आयोजन रामदेवरा (रूणिचा) (पोकरण) में होता है। इस मेले में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र तेरहताली नृत्य है जो कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

मेरवाड़ा का कुंभ

पुष्कर (अजमेर)

यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। मेरवाड़ा का सबसे बड़ा मेला है। इस मेले के साथ-2 पशु मेले का भी आयोजन होता है जिसे गिर नस्ल का व्यापार होता है। इस मेले को “तीर्थो का मामा” कहते है।

शेखावाटी का कुंभ

खाटूश्याम जी (सीकर)

झुंझुनू जिला मुख्यालय से 4 किमी की दूरी पर स्थित आबू गांव के ग्रामीण हाट में प्रत्येक वर्ष जनवरी-फरवरी के महीने में दस दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।