कला का बेजोड़ उदाहरण है टोंक ज़िले का हाथी भाटा
जो की एक ही पत्थर से बना हैं।
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पांचाली भगवान गणेश की पूजा के बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थी, इसलिए पांडवों ने रातों रात एक विशालकाय पत्थर को तराश कर यह मूरत बना दी.
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पांडवों ने इस मूरत में प्राण भी डाल दिए थे. कहा जाता है कि उस समय यह हाथी 14 कोस के क्षेत्र में घूमकर पहरा भी देता था.
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हाथी के बगल में ही तलाई को लेकर मान्यता है कि महाबली भीम ने अपने घुटने से इसकी खुदाई की थी. दावा किया जाता है कि इस तलाई की गहराई पाताल तक है
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जब सैनिकों ने इसके पैर तोड़ने का प्रयास किया तो खून की धारा निकलने लगी. इससे कारीगर और सैनिक डर कर भाग गए.
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12 वी सदी में बना यह हाथी भाटा केवल टोंक ही नहीं बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
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हाथीभाटा टोंक जिले से 22 किलोमीटर और ककोड़ के ऐतिहासिक किले से लगभग 5 किलोमीटर दूर गुमानपुरा गांव में स्थित है।
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हाथीभाटा के दाहिने कान पर लिखा शिलालेख हाथीभाटा के ऐतिहासिक होने का प्रमाण देता है।
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धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से हाथीभाटा का अपना ही महत्व है। हाथी भाटा दूर से देखने पर जीवित हाथी जैसा दिखता है।
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