मेवाड़ के लिए जो किया उसे आज भी याद किया जाता है और लोग उनकी पूजा करते हैं। उनके महल में आज भी लोग उनकी वीरगाथा को महसूस कर सकते हैं। आज हम आपको हाड़ी रानी के बारे में बात कर रहे 

कौन थी ये हाड़ी रानी, जिसने अपने पति के लिए अपना सिर धड़ से अलग कर दिया था,

हाड़ी रानी राजस्थान के महाराज हाड़ा चौहान राजपूत की बेटी थीं। उनकी शादी मेवाड़ के सलूंबर के सरदार रतन सिंह चूड़ावत से हुआ था। शादी के कुछ ही दिन बाद उनके पति सरदार रतन सिंह को एक युद्ध में जाना पड़ा।

 सरदार रतन सिंह अपनी नई नवेली दुल्हन को छोड़ ऐसे जाना नहीं चाहते थे, लेकिन राजपूती होने के नाते वह अपने धर्म से पीछे भी नहीं हट सकते थे। 

वह जाने के लिए राजी हुए और रानी से एक निशानी मांग ली, ताकि वह उन्हें याद करें, तो उसे देख लें। मगर रानी ने जो निशानी दी, उसकी कल्पना कर पाना उनके लिए भी संभव नहीं था। 

किशनगढ़ के राजा मान सिंह और औरंगजेब के बीच युद्ध होना था और औरंगजेब ने किशनगढ़ पर आक्रमण की पूरी तैयारी पहले से की हुई थी। इधर मेवाड़ के राजा राज सिंह औरंगजेब को किशनगढ़ से पहले रोकना चाहते थे,

इसलिए उन्होंने यह जिम्मेदारी राव रतन सिंह को सौंप दी। रतन सिंह की शादी को कुछ ही दिन हुआ था और उन्हें अपनी रानी से दूर होना खल रहा था। 

युद्ध में जाने का मन न होते हुए भी उन्हें जाना पड़ा, लेकिन जाने से पहले उन्होंने अपने सैनिक को रानी से उनकी निशानी मांगी, ताकि युद्ध में उन्हें रानी की जुदाई का एहसास न हो।

हाड़ी रानी समझ चुकी थी कि उनके पति प्रेम के मोह में हैं और शायद वह अपना काम ठीक से न कर पाएं। यह सोचते हुए उन्होंने रतन सिंह के लिए एक पत्र लिखा और पास रखी तलवार से अपने सिर को कलम कर दिया।

सैनिक आंखों में आंसू लिए उनका सिर और पत्र रतन सिंह को देने पहुंच गया जिसे देख रतन सिंह भी खुद को रोक नहीं पाए।

हाड़ी रानी ने अपना सिर कलम करने से पहले जो पत्र रतन सिंह के लिए लिखा था, जिसमें उन्होंने अपने पति की हौसला-अफजाई की थी। हाड़ी रानी ने उन्हें युद्ध में आगे बढ़कर दुश्मनों को रोकने के लिए प्रेरित किया था।

उन्होंने रतन सिंह पर पूरा विश्वास दिखाते हुए लिखा था कि वह इस काम को पूरी कुशलता से कर सकते हैं। इस पत्र को पढ़कर रतन सिंह खुद को रोक नहीं पाए और हाड़ी रानी का सिर अपने कंधे में बांधकर युद्ध के लिए तैयार हो गए। 

यह हाड़ी रानी का ही विश्वास था कि वह यह युद्ध जीतेंगे और ऐसा ही हुआ। हाड़ी रानी ने मेवाड़ के लिए बिना सोचे-समझे खुद को कुर्बान कर दिया और हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गईं।